कुछ ख्वाब होते हैं (Kuch Khwab Hote Hain)
घरौंदे जैसे बचपन के ख्वाब
एक टूटा तो नया बना लेते हैं
कुछ, ताज़ा लम्हों की रेत से बना के
वक्त की नदी के किनारे यूँ ही छोड़ आते हैं
कुछ ख्वाब हमारे साथ बड़े होते हैं
कुछ हमारे birthday पे cake की तरह
हर साल कटते जाते हैं
और कुछ cake पे रखी मोमबत्तियों की तरह
हम खुद ही बुझा देते हैं
कुछ ख्वाब हम बनाते हैं
और कुछ ख्वाब हमे बनाते हैं
कुछ जिस्म पे एक निशान बन के रह जाते हैं
पर कुछ ख्वाब बड़े ढीठ होते हैं
ऐसा ही एक ख्वाब है ये
इस ख्वाब की उम्र बड़ी लम्बी है
ये बिन पूछे पनपता है
बाहर आने को मचलता है
शमा की तरह जलता है
पर हकीकत की हवा से डरता है
बाहर आ के बुझ न जाये
जब तक अन्दर है झूठ है पर जिंदा है
बाहर की भगदड़ में किसी सच
से कुचलने की आशंका है
ये ख्वाब मरेगा तो नहीं पर जाने कब निकलेगा
इस ख्वाब की उम्र बड़ी लम्बी है
ये ख्वाब मेरे कब्र तक जायेगा
और पस-ए-मर्ग शायद, कब्र पे
एक पौधा बन के निकलेगा
कल 24/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर...मन को छूती हुई रचना...
ReplyDeleteबधाई मनीष जी.
अनु